प्रतियोगिता परीक्षाओं का स्तर और उनकी प्रकृति चूंकि सामान्य बोर्ड परीक्षाओं से अलग होती है, इसीलिए उन्हें अपने दम पर पास कर लेना आसान नहीं होता। परंतु ये अभाव भी नहीं होता । हाँ यह आसान हो सकता है जब उन परीक्षाओं के लिए आपको बेहतर गाइडेंस यानी कोचिंग मिल रही हो। इस संदर्भ में हमारा पहला सवाल यह हो सकता है कि क्या प्रवेश / प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में कोचिंग लेना आवश्यक है अथवा नहीं ? अगर जवाब ‘है’ में हो तो स्वतः दूसरा सवाल मन में उठता है कि आखिर कोचिंग संस्थान कैसा हो, तथा उसका चुनाव कैसे व किस मापदंड पर करें ?
प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी हेतु आज ज्यादातर कोचिंग इंस्टीट्यूट गुणवत्ता व सफलता की कसौटी पर बेमानी साबित हुए हैं। इन कोचिंग संस्थानों द्वारा सफल प्रत्याशियों की जो लम्बी सूची प्रचारित की जाती है अधिकांशतः झूठी और भ्रम में डालने वाली होती है। दरअसल इन ‘तथाकथित’ कोचिंग इंस्टीट्यूट की बुनियाद ही वैसे लोग रखते हैं जो कभी खुद प्रतियोगिता परीक्षा के प्रत्याशी रहे होते हैं और असफलता के परिणामस्वरूप तथा बेरोजगारी के आलम में रोजगार पाने हेतु स्वयं कोचिंग इंस्टीट्यूट खोल लेते हैं। चूंकि पैसा कमाना इनका मुख्य लक्ष्य होता है तो स्वाभाविक है इनका ध्यान गुणवत्ता की तरफ कम रहेगा। कुछ कोचिंग संस्थान चलाने वाले तो प्रत्याशियों को आकर्षित करने के लिए, कुछ प्रसिद्ध विद्वानों के नाम अपने संस्थान से जोड़ लेते हैं और ऐसे ‘एक्सपर्ट विद्वान’ कुछ क्लास ही ले पाते हैं और शेष क्लास वैसे लोग संचालित करते हैं जिनकी पृष्ठभूमि अफवाहों से बनायी जाती है। प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने का सपना लिए उर्जा से ओत-प्रोत, नादान नये छात्र विशेषकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के वैसे छात्र जो दिल्ली, इलाहाबाद, पटना, लखनउ, जयपुर, रांची, इन्दौर आदि शहरों में सिर्फ कोचिंग लेने आते हैं, वे इस तरह के फैलाये हुए अफवाहों के जाल में शीघ्र फंस जाते हैं और हजारों रुपये इन कोचिंग संस्थानरूपी दुकान को दे देते हैं और इस तरह शुरू होता है प्रत्याशियों के शोषण का सिलसिला। ये कोचिंग इंस्टीट्यूट ‘अध्ययन सामग्री’ या ‘स्टडी मटेरियल’ के नाम पर कुछ अच्छी किताबों के महत्वपूर्ण अंश चुराकर इकट्ठा कर लेते हैं या किसी सफल प्रत्याशी के व्यक्तिगत नोट्स खरीद कर उसे ‘स्टडी मटेरियल’ के नाम पर छात्रों को दे देते हैं। बेचारा छात्र, जब विस्तार से स्वयं गहन अध्ययन करता है तो उसे खुद ‘स्टडी मटेरियल’ में विभिन्न पुस्तकों के चुराये गये अंशों का ज्ञान हो पाता है, लेकिन तब तक वह कोचिंग वालों के हाथों लुट चुका होता है। कुछ कोचिंग इंस्टीट्यूट तो पूरा पाठ्यक्रम भी नहीं पढ़ा पाते हैं, तो कुछ बैच शीघ्रता से खत्म करने के लिए एक दिन में 12 से 14 घंटे तक क्लास आयोजित कर छात्रों पर अनावश्यक बोझ डाल देते हैं। शोषण का यह सिलसिला सिर्फ छात्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसे पढ़ाने वाले शिक्षक भी तथाकथित कोचिंग डाइरेक्टरों द्वारा अक्सर मानसिक व आर्थिक शोषण के शिकार होते रहते हैं। कई बार शिक्षकों के बीच प्रतिद्वन्द्विता व संघर्ष करा कर उनका आर्थिक शोषण किया जाता है। अतरू अविश्वास, ठगी से युक्त और गुणवत्ता से कोसों दूर इन, कोचिंग संस्थानों से छात्रों को सदैव सतर्क रहना चाहिए। कोचिंग संस्थान के चुनाव से पूर्व प्रत्याशी को कुछ बातों पर विचार कर लेना चाहिए। |
उस पर एक नजर
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